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नासमझ हो तुम

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नासमझ हो तुम अगर पत्थर से उसकी कोमलता का अनुमान लगाओ। चाँदनी से तराशे हैं उसके वक्र, मुलायम हवाएँ जैसे काँस के फूलों में पवन गुदगुदी करती हों। उसके अंग की गरमाहट वैसी है, जैसे शरद ऋतु में धरती से गुनगुनाता पानी निकलता हो। वह तारों की टिमटिमाहट का सार है, बैंगनी सुगंध से उसकी ज़ुल्फ़ें बनी हैं। चन्द्रमा की मृदुलता और रेशम-सी नरमाई उसकी रगों में बहती है। बादलों से पैदा हुई फुसफुसाहट से उसकी आवाज़ शुरू होती है। धरती उसकी कोमलता से प्यार करती है और चाहती है कि वह स्त्री अपनी आत्मा की हर ख़ुशी को व्यक्त करे। नारित्व से परिपूर्ण, सौम्य, और पवित्र, सुगंधित तेल भी उसके पसीने से जलते हैं। और तुम संगमरमर से कोई स्त्री नहीं बना सकते यह केवल एक कलात्मक नक़ल है। क्योंकि इस तरह का दिव्य, अलौकिक, नाज़ुक, और महीन होता है ओस की आख़िरी बूँद और कुमुदिनी का स्वप्न।

अहसास

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अहसास , जी पहले कभी नहीं था , अब वो मेरी , पलकों पर सुबह कि नींद सा, अधरों पर कोमल स्पर्श सा, मन में गुदगुदाती हँसी सा, आँखों में कटी स्तब्ध शीतल रात सा, एक अनजाने से मुस्कान सा...... कुछ तो है , जो मुझे अपने दामन में हरदम खींचता रहता है ...!!!

कैसे कहें अलविदा ये नयन रो पड़ेंगे

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आज नभ में तारे भी कम चमकेंगे घटा घनघोर भी हटे न हटेंगे , साथ थे जो हमारे सालों से आज तक लग रहा है वो भी छोड़कर चल चलेंगे , दिया साथ आपने अजनबी इस शहर में, आज फिर से हमें अजनबी कर चलेंगे , यादों की घड़ियाँ लिए साथ अपने उन पेड़ो की छावं में फिर हम मिलेंगे, बिताई है हमने जो चंद घड़ियाँ सुहानी, हॉस्टल की छत और गार्डेन की कहानी, इस शहर की सड़के भी तन्हा रहेगी तन्हा रहेगी और हमसे कहेगी , "रोक लो इन सितारों को जाने को है, जिनकी मंजिल गगन को सजाने में है" आपको रोकें या हम खुद को संभालें लगता है यहाँ हम सभी रो पड़ेंगे, गगन रो पड़ेंगे चमन रो पड़ेंगे कैसे कहें अलविदा ये नयन रो पड़ेंगे ..!!!

चाहत

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जहाँ मिले थे वो एक दिन यूँ अचानक वहीँ फिर से मिलने को जी चाहता है, उनसे हो गयी है मुहब्बत खबर ये पहुँचाने को जी चाहता है , वो तो गुमसुम से खड़े रहते हैं हमें अपनी सुनाने को जी चाहता है , मैं तो ज़माने से डरता नहीं हूँ नज़रें मिलाने को जी चाहता है , मेरे दिल को जो तू न समझा ; खुद को मिटने को जी चाहता है !!

बस यूँ ही !!

ज़िन्दगी जब अपने हाथों से फिसलती महसूस होती है, पलकें खुली और आँखों में ख्वाहिश की चुभन महसूस होती है , तोड़ कर दे दो मुझे कोई मेरे ख्वाहिश के सितारों को , एविं ज़िन्दगी भी ज़बरदस्ती की महसूस होती है ..!!! यूँ तेरा शरमा के चले जाना कुछ तो बयां करती है , बेक़रारी ए दिल में नींद तुम्हें भी नहीं आती ; यूँ तो कसक इश्क की मेरे दिल में भी है , रह रह के टीस क्या तेरे दिल में नहीं आती ..??