धन दौलत उपहार न माँगा
झूठी बातों का व्यापार न माँगा
जीवन के दुर्गम राहों के खातिर
कोई हमदम यार न माँगा ,
बह चली है साँसे भी संग
अब लहरों के स्पंदन पर
डूबे जाने के भय से भी
कोई खेवनहार न माँगा
जो विनती है प्रभु तुमसे , तुमको ही सुनाना है
जो प्यार मुझी से करती है, पर मुश्किल उसका कह पाना है
उसकी साँसों का साथ मिले, कश्ती भी पार लगाना है,
दिल हारा मैं बेचारा, अब जां ही फ़क्त लुटाना है ,